Tuesday, December 23, 2008

' माँ ' की महिमा....................

माँ ,
तुम कितनी विशेष हो,
तुम्हारी यादों के बिन जीवन यह शेष हो,
तुम्हें याद करने के लिए दिवस विशेष हों,
यदि ऐसी सोच भी मन में हो ,
हम उसी क्षण अवशेष हों |

पल-पल है मुझको प्रेरित करती,
जीवन से हर दुःख को हर लेती,
नौ माह तक हमें कोख में रखती,
हमारे ख्याल में कोई क़सर धरती,
प्रसव की मृत्योंमुख पीड़ा को सहती,
ख़ुद, गीले में सोकर भी है हँसती |

रग-रग में तेरी छवि है बनती,
खुशियों की सारी दुनिया
बस तुझमे ही बस्ती |
करते तेरे गुणगान मेरी जुबान थकती,
मैं तेरी महिमा को शब्दों में बाँध सकूँ ,
ऐसी मेरी क्या हस्ती |

बचपन में तुमने मुझे,
जब भी नहलाया,
मैंने सारी रात रो-रो कर तुम्हें है जगाया ,
तुमने ही मुझे चलना सिखलाया,
पर तुम्हरे बुलाने पर, मैं भागता नज़र आया |
मेरी हर प्रिय 'डिश' अपने हाथों से बनाई,
प्यार से परोसा पहले,
ख़ुद बाद में खाई |

मेरी हर छोटी-छोटी जरूरतों को,
अपनी खूंटे से बंधी छोटी सी बचत से,
या हो आइस क्रीम , या की गोलगप्पे,
बड़े स्नेह से , वो सब कुछ दिलाई |

आस थी, कि मैं कुछ कहूँ तुमसे,
गयीं जब तुम मुझे स्कूल को छोड़ने ,
दोस्तों कि गपशप कि जल्द में,
शायद मुझे थी फुर्सत मुँह को मोड़ने |

कॉलेज में तुमने दी थी मुझे ,
सही राह पर चलने की नसीहत,
पर मैंने रातों जागकर पार्टियाँ की ,
हुई तुम्हारे अरमानों की , कुछ यूँ फजीहत |

माँ,
शायद अब अब भी समझ पाया ,
तुम्हारे दिल की ममता को तवज्जो दे पाया,
हूँ शर्मसार मैं ,
अपनी इस गुस्ताखी पर,
हुआ तुम्हारे वात्सल्य का अनुपम असर,
तुम्हारे उपकारों को मैं परख पाया |

तुम रखती हो हर पल ध्यान हमारा,
क्षण भर भी उतरे ,
मन से ख्याल तुम्हारा |

धात्री,अम्बे,मातु,
मैया, जननी,धरनी ,
हे माँ !
कैसे बखान करूँ ,
तुम्हारे उपकारों की करनी |

हे माँ !
कैसे बखान करूँ ,
तुम्हारे उपकारों की करनी |

1 comment:

  1. This poem was written on 18th May 2008,originally inspired by Mother's Day celebration thoughts form Radio....and later on reviwed and re-written with add-ons to present in "Kavya-Paath" pratiyogita in CDOT.

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