कुछ यूँ है तेरा मेरा नाता
ना मैं समझ पाया ,
और ना किसी को समझा पाया |
मानो तो है सब कुछ
पर ना हो तो ,
दूरियों में सिमटी पल पल की नज़दीकियों का सच |
तुम हो मुझमे ,
या की मैं हूँ तुममे
फिर भी क्यों इतने गुमसुम |
तुम हर सोच में हो मुझसे विपरीत
कारण बने यही
हमारे रिश्तों की प्रीत |
तुम हो जितनी भुल्लकड़
मैं उतना ही रखता यादों को पकड़ |
फिर भी क्यों हममें इतना लगाव ,
कि दूरियाँ
भी ना ला पायें हमारे रिश्तों में अलगाव |
हमारे रिश्ते की डोर है इतनी कोमल,
जुड़ी रहें जो 'बचपन' की यादों से पल -पल |
हमारा रिश्ता जो है सच्चाई की नींव पर खड़ा,
ज़माने की सोच से लड़कर भी है अड़ा |
मेरी दुनिया बस तुझमें है सिमटी,
जैसे पेड़ को थामे रखती है मिट्टी |
रहे ये रिश्ता हमारा,
हमेशा ये बरकरार,
हो जितनी चाहे भी-
तक़रार , इनकार , इक़रार या प्यार|
इसे मत समझना तुम इज़हार का नज़राना,
यह तो बस है मेरी भावनाओं का फसाना |
तुमको कितना मैने है समझा,
बस उतना ही तुमसे है कहना |
रहेगी हमारे इस नाते की मिसाल दुनियाँ जहाँ में,
चाहे जितनी बाधायें आयें हमारे रिश्तों की राह में |
अब दूँगा अपनी सोच को विराम,
हम सदा खुश रहें,
बस ' भगवान जी ' से है
यही प्रार्थना और अरमान |
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