Thursday, April 16, 2020

"मित्रता": एक परिभाषा

न मीलों में मापा जा सके जिसका विस्तार,
न शब्दों में बखाना जा सके जिसका आकार,
वक़्त की नज़ाक़त पर कर ले ये हर रिश्ता अख्तियार 
उसे ही कहते हैं मित्रता मेरे यार |
पोटली में बंधे मुट्ठी भर सत्तू का मान है मित्रता,
कृष्ण के दरबार में पहुंचे सुदामा का सम्मान है मित्रता,
राम के प्रति सुग्रीव की श्रध्दा का आधार है मित्रता,
यदि त्याग, समर्पण, विश्वास न हो तो निराधार है मित्रता |
बनते नहीं हैं , यूँ ही राह चलते मित्र कभी,
करनी पड़ती है 'अर्जित', मिलती है मित्रता तभी,
न तो कथ्य से, न ही केवल कृत्य से ,
सुख-दुःख में  साथ रहकर मित्रता होती है बड़ी |
सोचा यूँ अचानक, या कहूँ लगा यूँ अचानक,
कि जनती कहाँ है, बनती कहाँ है, पलती कहाँ है,
घटनाएं, यादें, कहानियां जो बने दोस्ती का कथानक,
अब तो हो गया है दोस्ती का रूप अति व्यापक |
मित्रता तो अब केवल एक क्लिक भर दूर है ,
थ्री-जी मोबाइल हो तो जेबों में मिलते मित्र भरपूर हैं,
न जाना , न मिले कभी, न ही चन्द लम्हे बातें कीं कभी,
फिर भी मैत्रेय कि परिपक्वता का दिखावा जरुर है |
सम्प्रति, समाज में मैत्रेय कि बदली परिभाषा है,
बढ़ गयी है उम्मीदों कि लड़ी, घट गयी प्रत्याशा  है ,
साथ निभाने से बढती मित्रता में प्रगाढ़ता है ,
वरना आज कि मित्रता कि पहचान बन गयी अप्रौढ़ता है |
( सिंतबर 2011 में रचित)

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