Thursday, April 16, 2020

मानव जीवन रिश्तों का एक चक्र है, जिसमें स्त्री का अभिन्न स्थान है और वह अलग-अलग रूपों में पुरुष के जीवन में हर चरण पर अपना एहसास दिलाती है ।माँ, बहन, बेटी, पत्नी आदि विभिन्न रिश्तों को पिरोये जो व्यक्तित्व है, वह कहलाती है - "औरत "

रिश्तों को जन्म देती,
संजोती ,सजाती ,सँवारती है औरत।
हर पल, हर छिन ख़ुद को रवां कर
पुरुष को तारती है औरत ।।

माँ रूप में पहली गोद देती,
फलित,पोषित बेटे को करती है औरत ।
चलना-खाना, हँसना-रोना
जीवन का हर ढंग सिखाती है औरत ।।

कलाई पर राखी बाँध , रक्षा की सौगंध ले
लड़ती-झगड़ती है भाई से औरत।
शिकवे-शिकायतों को छिपाती,
हर खेल में भागीदारी करती है औरत ।।

युवा ख्यालों-ख्वाबों को पंख देती,
पति से कन्धा मिलाकर चलती है औरत।
सुख-दुःख की साझेदार,
पुरुष संग नयी पौध रोपती है औरत ।।

पुष्पों सी पल्लवित, सुगंध से परिपूर्ण
बेटी का सुख देती है औरत ।
खेली जो आँगन, पली जो दामन
अगले घर की रौशनी बनती है औरत ।।

ब्याह कर आती,नए रीति-रिवाज लाती
बहू के रूप में लक्ष्मी है औरत ।
पुनः नव संबंधों को आधार दे
एक और पुरुष को जन्म देती है औरत ।।

न अबला है, न दुर्बल है
दुर्गा, काली, शक्ति स्वरूपा है औरत।
जब ठान ले मन में जीत की
खुद ही विजय का अवतार है औरत ।।

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